म्यूचुअल फंड के नुकसान क्या हैं ?

म्यूचुअल फंड एक लोकप्रिय निवेश विकल्प है, जो निवेशकों को विभिन्न प्रकार के शेयर, बॉन्ड और अन्य वित्तीय संपत्तियों में निवेश करने का अवसर प्रदान करता है। म्यूचुअल फंड का मुख्य उद्देश्य निवेशकों के पैसे को एकत्रित करके उसे पेशेवर धन प्रबंधकों द्वारा विभिन्न वित्तीय उपकरणों में निवेश करना होता है। म्यूचुअल फंड्स ने बहुत से निवेशकों के लिए अच्छा रिटर्न और पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन उपलब्ध कराया है। हालांकि, म्यूचुअल फंड्स के लाभों के साथ कुछ नुकसान भी जुड़े होते हैं, जिनके बारे में निवेशकों को समझना बहुत आवश्यक है।

इस लेख में हम म्यूचुअल फंड के नुकसान (Disadvantages of Mutual Funds) पर चर्चा करेंगे, ताकि निवेशक इस निवेश विकल्प का चयन करने से पहले उसके सभी पहलुओं को समझ सकें।

1. मार्केट रिस्क (Market Risk)

म्यूचुअल फंड्स का मुख्य नुकसान उनका मार्केट रिस्क है। क्योंकि म्यूचुअल फंड्स का निवेश शेयर बाजार, बॉन्ड बाजार, और अन्य वित्तीय उपकरणों में होता है, इसलिए उनका प्रदर्शन बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है।

  • एक्विटी म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने पर बाजार की अस्थिरता का प्रभाव पड़ सकता है। अगर बाजार में गिरावट आती है, तो फंड्स की कीमत भी गिर सकती है, और इसके कारण निवेशकों को नुकसान हो सकता है।
  • डेट म्यूचुअल फंड्स भी ब्याज दरों के उतार-चढ़ाव के प्रभाव में आते हैं। अगर ब्याज दरों में वृद्धि होती है, तो डेट फंड्स की कीमतें गिर सकती हैं।

इस प्रकार, म्यूचुअल फंड्स निवेशकों को बाजार के जोखिम से पूरी तरह मुक्त नहीं कर सकते हैं। बाजार के उतार-चढ़ाव से निवेशकों को कभी-कभी नुकसान भी हो सकता है।

2. व्यवस्थापन शुल्क (Management Fees)

म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने का एक अन्य नुकसान उनका व्यवस्थापन शुल्क (Management Fees) होता है।

  • जब आप किसी म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं, तो म्यूचुअल फंड कंपनी उस फंड को चलाने के लिए कुछ फीस लेती है। यह फीस Expense Ratio के रूप में होती है और यह फंड की कुल संपत्ति का एक प्रतिशत होती है।
  • यह शुल्क आपके द्वारा निवेश की गई राशि को कम करता है और समय के साथ इसका प्रभाव आपके रिटर्न पर पड़ सकता है। यदि आप लंबे समय तक निवेश करते हैं, तो छोटे-छोटे शुल्कों का समग्र असर काफी बड़ा हो सकता है।

इसलिए, निवेशक को फंड का Expense Ratio हमेशा ध्यान से देखना चाहिए, क्योंकि यह उनके रिटर्न को प्रभावित कर सकता है।

3. निवेश में लचीलापन की कमी (Lack of Flexibility)

म्यूचुअल फंड्स के साथ एक और बड़ी समस्या है उनकी लचीलापन की कमी। म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने के बाद, आपके पास उस निवेश को तुरंत बदलने या निकालने की स्वतंत्रता नहीं होती है।

  • एक्विटी म्यूचुअल फंड्स में अगर आपको निवेश के दौरान अच्छा रिटर्न नहीं मिल रहा है या बाजार में गिरावट आ रही है, तो आपको अपनी स्थिति बदलने का समय नहीं मिलता।
  • म्यूचुअल फंड्स में क्लोज-एंड फंड्स जैसे विकल्प होते हैं, जो एक निश्चित समय अवधि के लिए होते हैं। इसका मतलब यह है कि इन फंड्स को पहले से निर्धारित समय तक लॉक करके रखा जाता है। इसमें निवेशक के पास जल्दी पैसे निकालने का कोई विकल्प नहीं होता है।

इसलिए, यदि निवेशक किसी इमरजेंसी के दौरान अपनी निवेश की राशि को जल्दी से निकालना चाहता है, तो म्यूचुअल फंड में निवेश करना उसके लिए सबसे आदर्श विकल्प नहीं हो सकता है।

4. कम रिटर्न (Lower Returns)

म्यूचुअल फंड्स में निवेश करके आपको उतना अच्छा रिटर्न नहीं मिल सकता जितना कि शेयर बाजार में सीधे निवेश करके मिल सकता है।

  • डेट म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने पर रिटर्न सीमित हो सकता है, क्योंकि इन फंड्स का निवेश मुख्य रूप से सरकारी बॉन्ड्स, कॉर्पोरेट बॉन्ड्स या अन्य फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज में होता है।
  • एक्विटी म्यूचुअल फंड्स में भी जब बाजार मंदी में होता है, तो फंड्स का प्रदर्शन कमजोर हो सकता है। इसके कारण, निवेशकों को अपेक्षाकृत कम रिटर्न मिल सकता है।

इस प्रकार, म्यूचुअल फंड्स में निवेश करना एक सुरक्षित विकल्प हो सकता है, लेकिन लंबी अवधि में उच्च रिटर्न की तलाश करने वालों को यह कुछ हद तक निराश कर सकता है।

5. निवेशक के नियंत्रण में कमी (Lack of Control Over Investments)

जब आप म्यूचुअल फंड्स में निवेश करते हैं, तो फंड मैनेजर आपके पैसे का प्रबंधन करता है। निवेशक के पास अपने निवेश पर नियंत्रण नहीं होता है।

  • यह निवेशक के लिए एक नुकसान हो सकता है, खासकर उन निवेशकों के लिए जो चाहते हैं कि उनका पैसा केवल विशेष प्रकार के सेक्टरों या कंपनियों में ही निवेश किया जाए।
  • आप यह नहीं तय कर सकते कि आपका पैसा किस स्टॉक या बांड में निवेश होगा। फंड मैनेजर इसका निर्णय करते हैं, और वह अपने विवेक से निवेश करते हैं।

इससे निवेशक को यह महसूस हो सकता है कि उनके पास उनके निवेश पर कम नियंत्रण है, और यह उनके लिए एक चिंता का विषय हो सकता है।

6. लंबे समय तक निवेश की आवश्यकता (Long-Term Commitment Required)

म्यूचुअल फंड्स, खासकर एक्विटी म्यूचुअल फंड्स, को लंबी अवधि तक होल्ड करना होता है, ताकि उनका पूर्ण लाभ मिल सके। यदि आप म्यूचुअल फंड में जल्दी पैसा निकालते हैं, तो आपको बाजार के उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है, और इसका नकारात्मक प्रभाव आपके रिटर्न पर पड़ सकता है।

  • एक अच्छा रिटर्न प्राप्त करने के लिए, म्यूचुअल फंड्स में कम से कम 3-5 साल तक निवेश करना आवश्यक होता है।
  • यह लंबी अवधि का निवेश कभी-कभी निवेशकों के लिए मुश्किल हो सकता है, विशेषकर तब जब बाजार में भारी उतार-चढ़ाव हो रहे हों।

इसलिए, म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने से पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि आप लंबी अवधि के लिए निवेश करने के लिए तैयार हैं।

7. टैक्सेशन (Taxation)

म्यूचुअल फंड्स पर भी टैक्स लगता है, जो निवेशकों के लिए एक और नुकसान हो सकता है।

  • एक्विटी म्यूचुअल फंड्स पर LTCG (Long Term Capital Gains) टैक्स लागू होता है, जो 1 लाख रुपये से ऊपर की लाभ राशि पर 10% टैक्स लगता है।
  • डेट म्यूचुअल फंड्स पर भी टैक्स लगता है, लेकिन इसका STCG (Short Term Capital Gains) टैक्स 15% होता है और LTCG टैक्स 20% होता है, जिसमें indexation का फायदा लिया जा सकता है।

इस प्रकार, म्यूचुअल फंड्स पर टैक्स का असर आपके कुल रिटर्न पर पड़ सकता है।

8. निष्कर्ष

म्यूचुअल फंड्स के कई फायदे हैं, जैसे कि यह एक डाइवर्सिफाइड और पेशेवर रूप से प्रबंधित निवेश विकल्प है। हालांकि, इसके साथ-साथ कुछ नुकसान भी हैं जिन्हें निवेशकों को समझना जरूरी है। म्यूचुअल फंड्स का बाजार जोखिम, व्यवस्थापन शुल्क, कम लचीलापन, और टैक्सेशन जैसे नुकसान हो सकते हैं।

इसलिए, म्यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले इन नुकसान को ध्यान में रखते हुए एक बेहतर योजना बनाना जरूरी है। साथ ही, अपने निवेश के उद्देश्य और जोखिम क्षमता को समझकर ही म्यूचुअल फंड में निवेश करें।

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