1929 से 2024 तक के प्रमुख शेयर बाजार क्रैश : कारण, प्रभाव और आर्थिक पाठ

शेयर बाजार एक ऐसी वित्तीय प्रणाली है जो आर्थिक गतिविधियों और कंपनियों के प्रदर्शन का परिचायक होती है। लेकिन कभी-कभी इस बाजार में भारी गिरावट आती है, जिसे शेयर बाजार क्रैश (Stock Market Crash) कहा जाता है। जब क्रैश होता है, तो शेयरों के मूल्य तेजी से गिर जाते हैं, जिससे निवेशकों को भारी नुकसान होता है और इसके प्रभाव पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ सकते हैं। यहां हम 1929 से लेकर 2024 तक के कुछ प्रमुख शेयर बाजार क्रैश की चर्चा करेंगे, उनके कारण, प्रभाव और उनसे मिलने वाले पाठ के बारे में।

1. 1929 का ग्रेट डिप्रेशन (Great Depression)

घटनाक्रम: 1929 का ग्रेट डिप्रेशन अमेरिकी इतिहास का सबसे बड़ा आर्थिक संकट था। 29 अक्टूबर 1929 को "ब्लैक मंगलवार" के रूप में प्रसिद्ध इस दिन अमेरिकी शेयर बाजार में जबरदस्त गिरावट आई। दाऊज जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज (DJIA) में एक दिन में 12% की गिरावट आई, और यह गिरावट कई महीनों तक जारी रही। इस संकट ने पूरे विश्व को प्रभावित किया और अनेक देशों में व्यापक बेरोजगारी और गरीबी का कारण बना।

कारण:

  • शेयरों का अत्यधिक मूल्यांकन: 1920 के दशक में शेयरों की कीमतें बढ़ी थीं, लेकिन इनके पीछे कोई ठोस आर्थिक आधार नहीं था।
  • अत्यधिक कर्ज पर निवेश: निवेशक शेयर खरीदने के लिए कर्ज ले रहे थे, और जब कीमतें गिरने लगीं, तो यह बिकवाली का कारण बनी।
  • कृषि संकट और बैंक विफलता: कृषि क्षेत्र में मंदी और बैंकिंग संस्थाओं की विफलता ने संकट को बढ़ाया।

प्रभाव: यह क्रैश 10 वर्षों तक चला और वैश्विक आर्थिक मंदी का कारण बना। लाखों लोग बेरोजगार हुए और बैंकों का कारोबार ठप हो गया।


2. 1987 का ब्लैक मंडे (Black Monday)

घटनाक्रम: 19 अक्टूबर 1987 को शेयर बाजार में एक भयावह क्रैश आया, जिसे "ब्लैक मंडे" के नाम से जाना जाता है। इस दिन, दाऊज जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज (DJIA) में 22.6% की गिरावट आई, जो एक रिकॉर्ड थी। यह गिरावट केवल अमेरिका तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि पूरी दुनिया के शेयर बाजारों में एक समान संकट देखा गया।

कारण:

  • ऑटोमेटेड ट्रेडिंग: कंप्यूटर आधारित व्यापार और एल्गोरिदम ट्रेडिंग ने गिरावट को और तेज कर दिया।
  • अंतरराष्ट्रीय बाजारों का प्रभाव: एशियाई और यूरोपीय बाजारों की अस्थिरता ने अमेरिकी बाजार को प्रभावित किया।
  • बाजार में अधिक तात्कालिकता: निवेशकों के बीच अनावश्यक भय और अटकलों का माहौल बना।

प्रभाव: इस क्रैश के बाद, बाजार में अस्थिरता बनी रही, लेकिन अमेरिकी और वैश्विक बाजारों ने धीरे-धीरे रिकवरी की। इस घटना ने यह दिखाया कि तकनीकी ट्रेडिंग और वैश्विक प्रभावों का बाजार पर गहरा असर हो सकता है।


3. 2000-2002 का डॉट-कॉम बबल (Dot-Com Bubble)

घटनाक्रम: 1990 के दशक के अंत में, इंटरनेट और तकनीकी कंपनियों की उच्च उम्मीदों ने एक बड़ा बबल बना दिया। 2000 तक यह बबल फट गया, जिससे वैश्विक शेयर बाजारों में गिरावट आई। इंटरनेट से जुड़ी कंपनियों के शेयरों की कीमतें बहुत अधिक बढ़ गई थीं, लेकिन उनके पास कोई ठोस राजस्व मॉडल नहीं था। जब निवेशकों को यह समझ में आया कि इन कंपनियों का भविष्य असुरक्षित है, तो बाजार में भारी बिकवाली हुई।

कारण:

  • इंटरनेट कंपनियों का अत्यधिक मूल्यांकन: इन कंपनियों के पास भले ही कोई लाभ नहीं था, फिर भी उनकी शेयर कीमतें आसमान छूने लगी थीं।
  • निवेशकों का अति-आशावाद: इंटरनेट की संभावनाओं को लेकर निवेशकों ने बिना किसी ठोस वित्तीय आधार के निवेश किया।
  • निवेशकों के बीच भय: जैसे ही कंपनियों का प्रदर्शन कम हुआ, निवेशकों का विश्वास टूट गया।

प्रभाव: इस बबल के फटने के बाद, तकनीकी क्षेत्र में कई कंपनियां दिवालिया हो गईं, और निवेशकों ने भारी नुकसान उठाया। हालांकि, इंटरनेट और तकनीकी क्षेत्र ने बाद में सुधार किया और पुनः विकास की दिशा में बढ़ा।


4. 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट (Global Financial Crisis 2008)

घटनाक्रम: 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट दुनिया भर के वित्तीय बाजारों को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख संकट था। इसकी शुरुआत अमेरिका के रियल एस्टेट बाजार से हुई, जहां बैंक ने अव्यवस्थित तरीके से "सबप्राइम लोन" (जो उच्च जोखिम वाले लोन थे) दिए थे। इन लोन के संकट में फंसने के बाद, कई बड़े वित्तीय संस्थान दिवालिया हो गए, जैसे कि लहमन ब्रदर्स। इसके बाद अमेरिकी और अन्य देशों के शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट आई।

कारण:

  • सबप्राइम लोन संकट: बैंकों ने अत्यधिक जोखिम वाले कर्ज दिए, जिनके बकाये चुकता नहीं हो पाए।
  • जटिल वित्तीय उत्पादों का निर्माण: CDOs (Collateralized Debt Obligations) और MBS (Mortgage-Backed Securities) जैसे जटिल वित्तीय उत्पादों की वजह से बाजार में भारी अनिश्चितता बनी।
  • बैंकिंग क्षेत्र का संकट: लहमन ब्रदर्स जैसे प्रमुख बैंकों का दिवालिया होना वित्तीय बाजारों में अव्यवस्था का कारण बना।

प्रभाव:

  • ग्लोबल मंदी: अमेरिका, यूरोप और एशिया के देशों में आर्थिक मंदी का दौर आया।
  • बेरोजगारी और व्यापार में गिरावट: लाखों लोग बेरोजगार हो गए और व्यापार में भारी गिरावट आई।
  • बाजार में अस्थिरता: वैश्विक शेयर बाजारों में भारी उतार-चढ़ाव हुआ और वित्तीय संस्थाएं अस्थिर हो गईं।

5. 2015-2016 का चीनी शेयर बाजार संकट (Chinese Stock Market Crash)

घटनाक्रम: 2015 और 2016 में, चीन का शेयर बाजार भारी गिरावट से गुज़रा। 2015 में शंघाई कंपोजिट इंडेक्स में 30% से अधिक की गिरावट आई। इस गिरावट ने वैश्विक बाजारों को प्रभावित किया, क्योंकि चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इस दौरान सरकार ने बाजार को स्थिर करने के लिए कई कदम उठाए, लेकिन फिर भी बाजार की अस्थिरता बनी रही।

कारण:

  • बाजार में अत्यधिक मूल्यांकन: चीन में शेयरों का अत्यधिक मूल्यांकन हुआ था, जो वास्तविक आर्थिक स्थिति से मेल नहीं खाता था।
  • सरकारी हस्तक्षेप: सरकार की ओर से बार-बार हस्तक्षेप और व्यापार पर प्रतिबंधों के कारण निवेशकों का विश्वास कमजोर हुआ।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रभाव: चीन की आर्थिक कमजोरी का असर अन्य देशों के शेयर बाजारों पर पड़ा।

प्रभाव: इस संकट ने वैश्विक वित्तीय बाजारों को अस्थिर कर दिया, और चीन के व्यापार भागीदारों को भी इसका असर महसूस हुआ।


6. 2020 का COVID-19 महामारी संकट (COVID-19 Pandemic Crash)

घटनाक्रम: 2020 की शुरुआत में जब COVID-19 महामारी ने दुनिया भर में फैलना शुरू किया, तो इसका असर वैश्विक शेयर बाजारों पर पड़ा। मार्च 2020 में, अधिकांश देशों के शेयर बाजारों में गिरावट आई, और दाऊज जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज में 30% से अधिक की गिरावट आई। इसके कारण निवेशकों में भारी भय पैदा हुआ और आर्थिक गतिविधियों में ठहराव आया।

कारण:

  • महामारी का प्रभाव: COVID-19 महामारी ने विश्वव्यापी आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया, जिससे कंपनियों की आय पर दबाव बढ़ा।
  • लॉकडाउन और व्यापार में रुकावट: लॉकडाउन और व्यापार बंद होने से आर्थिक गतिविधियाँ ठप हो गईं, और निवेशकों ने अपनी पूंजी निकाल ली।
  • अनिश्चितता का माहौल: महामारी के कारण भविष्य के बारे में अनिश्चितता और भय बढ़ गया।

प्रभाव:

  • वैश्विक मंदी: महामारी ने वैश्विक मंदी को जन्म दिया और कई देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया।
  • स्वास्थ्य क्षेत्र पर दबाव: चिकित्सा सुविधाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भारी दबाव पड़ा।
  • बाजार में रिकवरी: हालांकि, सरकारों द्वारा राहत पैकेज और समर्थन के कारण बाजारों ने तेजी से रिकवरी की और 2020 के अंत तक कई बाजार उच्चतम स्तरों पर लौट आए।

7. 2022 का यूक्रेन-रूस युद्ध संकट (Ukraine-Russia War Crash)

घटनाक्रम: 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण के बाद, वैश

्विक शेयर बाजारों में भारी गिरावट आई। ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विघटन ने निवेशकों को चिंतित कर दिया। वैश्विक महंगाई और ब्याज दरों में वृद्धि ने बाजारों को और अस्थिर किया।

कारण:

  • जियोपॉलिटिकल अस्थिरता: यूक्रेन-रूस युद्ध ने वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ाई।
  • ऊर्जा संकट: युद्ध के कारण तेल और गैस की कीमतों में भारी वृद्धि हुई।
  • महंगाई और ब्याज दरों में वृद्धि: वैश्विक महंगाई के कारण केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों को बढ़ा दिया, जिससे बाजारों में और गिरावट आई।

प्रभाव:

  • वैश्विक मंदी का खतरा: कई देशों की अर्थव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही है।
  • ऊर्जा संकट: यूरोपीय देशों में ऊर्जा की भारी कमी महसूस हुई।
  • शेयर बाजारों में अस्थिरता: युद्ध के कारण वैश्विक शेयर बाजारों में बड़ी गिरावट आई।

निष्कर्ष

शेयर बाजार क्रैश एक सामान्य वित्तीय घटना है, लेकिन इसके प्रभाव काफी गहरे होते हैं। 1929 से 2024 तक हुए इन क्रैशों ने हमें यह सिखाया है कि वित्तीय बाजारों में अनिश्चितता और उतार-चढ़ाव स्वाभाविक हैं। हालांकि, हर संकट से कुछ न कुछ शिक्षा मिलती है, जैसे कि सही मूल्यांकन, जोखिम का प्रबंधन, और वैश्विक घटनाओं का ध्यान रखना। निवेशकों को सतर्क रहकर निवेश करने और बाजार की अस्थिरता से बचने के लिए अपनी रणनीतियाँ बदलने की आवश्यकता होती है।

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